"जिंदगी", by deepak sharma |
"धूप थी कहीं,तो, कहीं, छाँव भी मिली, अपनों के साथ से, हर,राह यूँ मिली, कटता रहा सफर, सुखद, अब शाम भी मिली, कुछ,देर से सही, इक, पहचान तो मिली" |
Posted: 2017-11-29 12:24:46 UTC |
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