"Innocent love", by deepak sharma |
*कलकल करती,नदियों की, बोली किसने,पहचानी है, सागर में,मिल जाना इनको, जिसकी ये दीवानी हैं, कलकल करती नदियों की, बोली किसने,--- धरा गगन से,हँस ये कहती, कितना भी दूर,रहो मुझसे,पर जब जब आँखें खोलोगे, ये नजरें,मुझ तक आनी हैं, कलकल करती नदियों की, बोली किसने---- कुछ पल ही तो,इस जीवन के, सब रंग,बदल कर जाते हैं, बाकी तो,पिछली यादें हैं,जो हर पल आनी जानी हैं, कलकल करती नदियों की, बोली किसने,पहचानी है, सागर में,मिल जाना इनको, जिसकी ये,दीवानी हैं" |
Posted: 2018-04-24 01:52:12 UTC |
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