"मन के जीते जीत"

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By deepak sharma

"बिखरना, फिर निखरकर,दूर तक जाना, हमें आता है, गिरकर भी संभलना,मंजिलें पाना, कहाँ आसान होती हैं, ये"राहें जिंदगी"अक्सर, बहुत मायूस करती हैं, ये"राहें जिंदगी"अक्सर, मगर इक हौंसला,होले से, आकर बुदबुदाता है, नहीं डरना,नहीं थकना, ना ही ठहराव लाना है, तलाशो रास्ता कोई, अभी तो दूर जाना है, वही खुशबू,वही खुशियां, वही जज़्बात,आने हैं, जिन्हें पाने की,ख्वाइश में, नए रस्ते बनाने हैं, यही है हौंसला जिसने, बनाई चाँद तक सीढ़ी, हवा में उड़ रहा,लोहा, जमी पर चल रही,गाड़ी, यही वह ख्वाब हैं,जो फिर, नई राहें बनायेंगे, उड़ेगे आसमां मे,और, नये सपने,सजायेंगे"

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