"जीवन इक आशा"

By deepak sharma •
"अँधियारी है,रात घनेरी,
कल फिर,होगा उजियारा,
फिर काहे बहके,तू मनवा,
बजा वही,फिर इकतारा,
ये मौसम तो,आते जाते,
कुछ बादल,कुछ धूप खिलाते,
इन मौसम से,क्यों घबरायें,
हँस कर क्यों ना,गले लगायें,
कुछ बूँदें,बन जायें मोती,
कुछ बरसें और,फूल खिलायें,
कुछ अँखियों से,बरस बरस के,
मन के सारे,मैल मिटायें,
बदले हैं जब,रुप सभी ने,
अपनी अपनी,चाहत से,
बदलेगी किस्मत भी,मनवा,
इक हलकी सी,आहट से,
फिर क्यों इतना,बेचैन हुआ तू,
बजा वही फिर,इक तारा,
अँधियारी है,रात घनेरी,
कल फिर,होगा उजियारा"