"चलते चलते"

By deepak sharma •
"ये नादान,परिंदे हमको,
सिखलाते ये,जीवन सार,
उड़ते उड़ते,उड़ जाना है,
दूर कहीं,नदिया के पार,
अपनी ख्वाइश,अपना रस्ता,
अपनी मँजिल और पहचान,
उड़ते उड़ते ही,मिल जाये,
इस चैहरे को,हर मुस्कान,
कुछ बातें,ठहरे पानी सी,
जीवन को,करती दुश्वार,
बहते पानी से,जीवन मे,
ढूँढो खुशियाँ,मिलें हजार,
इन राहों मे,तूफानों से,
हर किश्ती,डोले मझधार,
नाम प्रभु!का लेते लेते,
हो जाये, भवसागर पार"