"परछाइयों के शहर मे,
देखा है हर कहीं,
मुझको मेरी परछाईं,
न ढूँढे कहीं मिली,
तन्हाई थी बहुत,
वह करीब थे यहीं,
जब जख्म भर रहे थे,
ये रात ही चली,
परछाईयों के शहर मे,----
मजबूर थे बहुत,
दिल ऐ वफा किसे कहें,
होठों की उसी दिल से,
तकरार हो चली,
परछाइयों के शहर मे,------
अपनों को कहाँ ढूँढें,
अपनों की भीड़ में,
यहाँ चैहरे बदलने की,
नई रीत है चली,
परछाइयों के शहर मे,-----
देखा किये जहाँ मे,
उन्हें दूर दूर तक,
वह आज नजर आए तो,
ये शाम हो चली,
परछाइयों के शहर मे,
देखा है हर कहीं,
मुझको मेरी परछाईं,
न ढूँढे कहीं मिली" |