"परछाइयों के शहर में"

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By deepak sharma

"परछाइयों के शहर मे, देखा है हर कहीं, मुझको मेरी परछाईं, न ढूँढे कहीं मिली, तन्हाई थी बहुत, वह करीब थे यहीं, जब जख्म भर रहे थे, ये रात ही चली, परछाईयों के शहर मे,---- मजबूर थे बहुत, दिल ऐ वफा किसे कहें, होठों की उसी दिल से, तकरार हो चली, परछाइयों के शहर मे,------ अपनों को कहाँ ढूँढें, अपनों की भीड़ में, यहाँ चैहरे बदलने की, नई रीत है चली, परछाइयों के शहर मे,----- देखा किये जहाँ मे, उन्हें दूर दूर तक, वह आज नजर आए तो, ये शाम हो चली, परछाइयों के शहर मे, देखा है हर कहीं, मुझको मेरी परछाईं, न ढूँढे कहीं मिली"

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